Monday, 15 September 2025

ग़ज़ल- वो हमारे स्नेह का अपमान करते रह गए

वो हमारे स्नेह का अपमान करते रह गए
स्वार्थवश सम्बंध का नुकसान करते रह गए

आपने सम्बंध के अनुबंध को समझा नहीं
एक हम जो हर कहे का मान करते रह गए

भूमि धन सबकुछ दिया हमने पड़ोसी मानकर
वो हमारा किंतु बस नुकसान करते रह गए

आपको सत्ता मिली थी राष्ट्र के उत्थान हित
आप केवल स्वयं का उत्थान करते रह गए

लोकस्वर भरता रहा बस राजपथ पर सिसकियां
और चारण राज्य का गुणगान करते रह गए

वंचितों की सुध कभी सत्ता को होगी क्या पवन
जो महज लाइन में लग मतदान करते रह गए


✍️ डॉ पवन मिश्र

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