Sunday, 27 April 2025

ग़ज़ल- दिये में तेल जब भरपूर होगा

दिये में तेल जब भरपूर होगा
निराशा का अँधेरा दूर होगा

हमेशा स्याह रातें ही न होंगी
कभी तो चांद ये पुरनूर होगा

हमारी बात सुन लो बाद उसके
हमें हर फैसला मंजूर होगा

रहेगा वो मेरे शेरों में हरदम
मेरी बाहों से माना दूर होगा

मिला है ज़ख्म तो जल्दी दवा दो
वगरना एक दिन नासूर होगा

सपोलों को मिलेगी सीख तब ही
यक़ीनन वार जब भरपूर होगा

ये जो बिखरा पड़ा है सरहदों पर
किसी की मांग का सिंदूर होगा

✍️ डॉ पवन मिश्र

Monday, 31 March 2025

ग़ज़ल- ज़िंदगी है नाव और पतवार दोस्त

जिंदगी है नाव और पतवार दोस्त

इसलिये हों साथ में दो-चार दोस्त


दुश्वारियों को कौन कम कर पाएगा

गर नहीं होंगे तुम्हारे यार दोस्त


ठन गयी है रार इस संसार से

साथ मेरे हैं खड़े हथियार दोस्त


भीड़ की मुझको जरूरत ही नहीं

ज़िंदगी मे चाहिए बस चार दोस्त


ये जमाना साथ दे चाहे न दे

मुश्किलों में साथ हैं हर बार दोस्त


कर्ण की चाहत नहीं मुझको पवन

कृष्ण जैसा हो सलीकेदार दोस्त


✍️ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 24 November 2024

ग़ज़ल- मेरे शेरों को अता कर दे मआनी कुछ तो

मेरे शेरों को अता कर दे मआनी कुछ तो

जिससे गज़लों में मेरी आये रवानी कुछ तो


बाद तेरे भी रहे यार कहानी कुछ तो

जाते-जाते मुझे दे जाओ निशानी कुछ तो


दर्द के फूल खिलाने की इन्हें चाहत है

ख़ुश्क आंखों को मेरे यार दे पानी कुछ तो


तेरे बारे में बहुत कुछ है सुना दुनिया से

अब तमन्ना है सुनूं तेरी ज़बानी कुछ तो


दूर मंज़िल है भला कैसे पहुंच पाऊंगा

हौसलों को ऐ ख़ुदा बख़्श रवानी कुछ तो


✍️ डॉ पवन मिश्र

Monday, 28 October 2024

ग़ज़ल- अभी यह उन्स है प्यारे मुहब्बत दूर है तुमसे

अभी यह उन्स है प्यारे मुहब्बत दूर है तुमसे

अक़ीदत तक नहीं पहुँचे इबादत दूर है तुमसे


फ़क़त दो-चार दिन में छोड़ दें कैसे तकल्लुफ़ हम

अभी तारीफ़ ही ले लो शिकायत दूर है तुमसे


मेरे हमदम जरा सी दिल्लगी में रूठ जाते हो

तो इसके ये मआनी हैं ज़राफ़त दूर है तुमसे


सियासत में तुम्हे माना बुलंदी मिल गई लेकिन

अभी इंसानियत की यार रिफ़अत दूर है तुमसे


ये मेरा तजरिबा है ज़िंदगी का दोस्तों मानो

अगर माँ-बाप सँग हैं तो मुसीबत दूर है तुमसे


अभी तक तुम पवन पहुँचे रदीफ़-ओ-काफिया तक ही 

ग़ज़लगोई नहीं आसां लताफ़त दूर है तुमसे


✍️ डॉ पवन मिश्र


उन्स= लगाव, आकर्षण

अक़ीदत= श्रद्धा

तकल्लुफ़= औपचारिकता

ज़राफ़त= हँसी मज़ाक के प्रति समझ/अक्लमंदी

रिफ़अत= उत्कृष्टता, ऊंचाई

लताफ़त= ख़ूबी

ग़ज़ल- बताओ अक्स किसका है

चमकते चांद-तारों में बताओ अक्स किसका है

ये शबनम की फुहारों में बताओ अक्स किस का है


पहाड़ों और गारों में बताओ अक्स किसका है

वो गिरते आबशारों में बताओ अक्स किसका है


समंदर में किनारों में बताओ अक्स किसका है

नदी के बहते धारों में बताओ अक्स किसका है


गुलों में और ख़ारों में बताओ अक्स किसका है

चमन की इन बहारों में बताओ अक्स किसका है


चरागों में शरारों में बताओ अक्स किसका है

हर इक आईने में यारों बताओ अक्स किसका है


ख़ुदा का नूर ही है जो किये रौशन जहां सारा

नहीं तो इन नज़ारों में बताओ अक्स किसका है


✍️ डॉ पवन मिश्र


आबशारों= झरना

Thursday, 24 October 2024

ग़ज़ल- कोई प्यासा ही था जिसने नदी ईजाद की होगी

कोई प्यासा ही था जिसने नदी ईजाद की होगी

ग़मों से लड़ रहा होगा खुशी ईजाद की होगी


तसव्वुर में किसी के हर घड़ी महबूब ही होगा

तभी उसने कसम से बंदगी ईजाद की होगी


किसी प्यासे या प्रेमी ने किसी मुफ़लिस या राजा ने

भला किसने यहां बादा-कशी ईजाद की होगी


हवा-पानी, कड़कती धूप से बेज़ार होकर ही

किसी ने एक सुंदर झोपड़ी ईजाद की होगी


बशर कैसे उसे कह दूँ, फ़रिश्ता ही रहा होगा

कि जिसने इस जहाँ में दोस्ती ईजाद की होगी


✍️ डॉ पवन मिश्र


बादा-कशी= मदिरापान

Tuesday, 22 October 2024

ग़ज़ल- लेकिन शोर न हो

आह-ओ-फ़ुग़ाँ फ़रियाद सभी तुम कह दो लेकिन शोर न हो

अपनी चुप्पी मुझ तक आकर तोड़ो लेकिन शोर न हो


रहने दो दुनियावी नाज़ो नख़रे और तअल्ली सब

दिल की बातें कहनी हो तो कह दो लेकिन शोर न हो


रस्मों और रिवाज़ों के सारे बंधन ठुकराकर तुम

जब चाहो मुझसे मिलने आ जाओ लेकिन शोर न हो


रात जवां है, मैं हूँ, तुम हो, चांद-सितारे, सब तो हैं

अपना सर मेरे ज़ानू पे रक्खो लेकिन शोर न हो


हिज़्र उदासी तन्हाई बेचैनी सारे ग़म लेकर

दीवानों, तुमको तो हक़ है, तड़पो, लेकिन शोर न हो


✍️ डॉ पवन मिश्र


आह-ओ-फ़ुग़ाँ= विलाप

तअल्ली= डींग मारना

ज़ानू= गोद