Monday, 21 January 2019

दोहे- अवसरवादी राजनैतिक गठजोड़ के संदर्भ में



सत्ता की ही भूख है, सत्ता की ही प्यास।
कुत्ते सब जुटने लगे, हड्डी की ले आस।१।

मौसेरे भाई मिले, होने लगे करार।
हुवाँ हुवाँ करने लगे, मिलकर सभी सियार।२।

चोरों की बारात में, बुआ भतीजा साथ।
अवसरवादी भेड़िये, मिला रहे हैं हाथ ।३।

राजनीति के मंच पर, नंगा करता नाच।
भीड़ बजाए तालियां, खुश हो अर्थ पिशाच।४।

दल से दल मिलने लगे, दलदल हुआ विराट।
सबने मिलकर खड़ी की, लोकतंत्र की खाट।५।

                                ✍ डॉ पवन मिश्र


Monday, 14 January 2019

दोहे- उत्तर प्रदेश के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर



बैंगन को भी मात दे, राजनीति का ढंग।
लाल मिला नीला मिला, बना बैंगनी रंग।१।

राजनीति के व्योम में, मियां मुलायम अस्त।
बुआ भतीजा मिल गए, चचा पड़ गए पस्त।२।

गलबहियां करने लगे, जो बैठे थे रूठ।
अवसरवादी स्वांग है, सच मानो या झूठ।३।

कल तक साथी हाथ के, हाथी पकड़े आज।
राजनीति के खेल में, गहरे होते राज।४।

कुत्सित इनकी सोच है, कुत्सित इनके कृत्य।
आगे आगे देखिये, होंगें कितने नृत्य।५।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 13 January 2019

ग़ज़ल- बारहा इश्क़ में करार न कर



बारहा इश्क़ में करार न कर।
ऐसी गलती तू बार बार न कर।।

लाखों गम इश्क़ के अलावा हैं।
ज़िन्दगी और बेक़रार न कर।।

है मुहब्बत अगर तो आएगा।
ऐ मेरे दिल तू इंतजार न कर।।

दिल मेरा रेशमी गलीचे सा।
इसको धोखे से तार तार न कर।।

हद जरूरी बहुत है रिश्तों में।
हद के आगे किसी से प्यार न कर।।

ज़ख्म आंसू सबक़ मुहब्बत के।
दर्द का ऐसा कारोबार न कर।।

माना कड़वा हूँ, नीम हूँ लेकिन।
मुझको ऐसे तो दरकिनार न कर।।

ख़ाक होकर ही ये पवन समझा।
हुस्न वालों पे जाँ निसार न कर।।

              ✍ *डॉ पवन मिश्र*

बारहा= अक्सर, बारम्बार