कज़ा से चंद सांसें मांगती है।
अजब से मोड़ पर ये जिंदगी है।।
खुदा हर शय के भीतर है अगर तो।
भटकता दर ब दर क्यूँ आदमी है।।
भटकता दर ब दर क्यूँ आदमी है।।
फ़रिश्ता चढ़ गया सूली पे हँसकर।
सदाकत की उसे कीमत मिली है।।
सदाकत की उसे कीमत मिली है।।
ख़ुदा रखना सलामत बागबां को।
गुलों ने आज ये फरियाद की है।।
गुलों ने आज ये फरियाद की है।।
अलग आदाब हैं महफ़िल में तेरी।
मुझे उलझन सी अब होने लगी है।।
मुझे उलझन सी अब होने लगी है।।
ये खंज़र पीठ में पैवस्त है जो।
किसी अपने की ही साजिश हुई है।।
किसी अपने की ही साजिश हुई है।।
✍ *डॉ पवन मिश्र*
सदाकत= सच्चाई
आदाब= तौर-तरीके
आदाब= तौर-तरीके
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