बड़ी बेरंग महफ़िल है जरा सी रोशनी भर दो।
तरसती शाम है आकर इसे तुम खुशनुमा कर दो।।
लगा कर आग यूँ दिल में चले जाते हो तड़पा के।
सुलगते ज़िस्म पर थोड़ी फुहारें हुस्न की कर दो।।
बहुत बेचैन रहता हूँ न आती नींद रातों में।
ज़रा मौजूदगी की तुम यहाँ तासीर ही धर दो।।
डसे तन्हाइयां हमको है आलम बेक़रारी का।
बहुत गहरा अँधेरा है तेरे दीदार का फ़र दो।।
नहीं सुनता दीवाना ये तेरे ही ख्वाब में रहता।
हसीं ख्वाबों के जैसी ही मेरी अब जीस्त भी कर दो।।
समन्दर के थपेड़ो सा है मंजर दिल के अंदर का।
ये क़श्ती डूबने को है ज़रा सा आसरा भर दो।।
तुझे भी तो सताती है शबे तन्हाईयां अक्सर।
सुकूँ मिल जायेगा तुमको मेरे ज़ानू पे सर धर दो।।
तेरी आँखों सा गहरा हो तेरी धड़कन सी हो मौजे।
लिए क़श्ती खड़ा हूँ मैं मुझे ऐसा समन्दर दो।।
इसी उम्मीद से आया तेरे दर पे मेरे मौला।
पवन की आरज़ू बस ये कि उनकी दीद का ज़र दो।।
-डॉ पवन मिश्र
फ़र= चमक, प्रकाश ज़ीस्त= ज़िन्दगी
ज़ानू= गोद ज़र= दौलत, सम्पत्ति
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