उसे मुझसे यही शिकवा गिला है।
बताता क्यों नहीं दिल जो दुखा है।।
तुम्हे ही जब नहीं कुछ भी पता है।
किसी को क्या बताऊँ क्या हुआ है।।
मेरे आँखों तले कुछ ख्वाब पलते।
दिखाऊँ कैसे जो मुझको दिखा है।।
बहुत बेचैन कर दी जीस्त उसने।
दिखा के आइना कैसा गया है।।
लड़ा के आदमी को आदमी से।
कहे खुद को बड़ा वो रहनुमा है।।
ख़ुशी घर में ले आया आज चूल्हा।
कई शब बीतने पर ये जला है।।
बराहे रास्त आओ पास मेरे।
बताओ तो ज़रा क्या माजरा है।।
छिपा के अश्क़ आँखों में हँसे वो।
पवन जैसा दीवाना लग रहा है।।
-डॉ पवन मिश्र
जीस्त= जिंदगी
बराहे रास्त= सीधे तौर पर, बिना किसी को बीच में डाले हुए
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