हो गई दुश्मनी जमाने से।
लोग जलने लगे दीवाने से।।
मिलने आते थे जो बहाने से।
अब वो आते नहीं बुलाने से।।
आरजू दिल में दफ़्न कर के हम।
लौट आये तेरे मैखाने से।।
उनसे इज़हार अब जरूरी है।
देखें कब तक उन्हें बहाने से।।
रहनुमा फूल भी खिला दें गर।
पायें फ़ुर्सत जो घर जलाने से।।
तेरा मक्नून भाप जाता हूँ।
कुछ न होगा तेरे छिपाने से।।
मेरी तकदीर में नहीं था जो।
मिल गया हौसला दिखाने से।।
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर क्यों।
खुश नहीं वो पवन के जाने से।।
-डॉ पवन मिश्र
मक्नून= मंशा, मन की बात
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