सुना अभी उस गुरुकुल से स्वर, देश विरोधी आये हैं।
अफज़ल अफज़ल चिल्लाते जो, वो श्वानों के जाये हैं।।
मार्क्सवाद का ढोंग रचा के, खुद को कहे सयाना है।
देश कलंकित करने का तो, इसका कृत्य पुराना है।।
नवयुवकों में देश द्रोह का, बीज यही तो बोते हैं।
आतंकी जब मारे जाते, ये चिल्लाते रोते हैं।।
नाम कला का लेकर के ये, नग्न नाच दिखलाते हैं।
आने वाली पीढ़ी को बस, भौतिकता सिखलाते हैं।।
कह दो उनसे जाकर कोई, दाल न अब गल पायेगी।
विद्या के मन्दिर पे केवल, ज्ञान घटा ही छायेगी।।
चुन चुन के सारे गीदड़ अब, दूर भगाये जायेंगे।
बहुत हो गया लाल लाल अब, रँग भगवा लहरायेंगे।।
-डॉ पवन मिश्र
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