आवाज़ उठा ज़ुल्म की साजिश को कुचल दो।
नापाक इरादों की ये सरकार बदल दो।।
घोला है जहर जिसने फ़िज़ाओं में चमन के।
फ़न सारे सपोलों के चलो आज कुचल दो।।
मुर्दा न हुए हो तो भरो जोश लहू में।
*तूफान से टकराओ हवाओं को बदल दो*।।
कुछ भी न मिलेगा जो किनारों पे खड़े हैं।
बेख़ौफ़ समन्दर की हरिक मौज मसल दो।।
अरमान सजाये न सितारों के पवन ने।
बस प्यार में डूबे वो हसीं चार ही पल दो।।
✍ डॉ पवन मिश्र
*जोश मलीहाबादी साहब का मिसरा
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