याद दिलाया उसने रूल,
तुमको क्यूँ लगता है शूल।
तुम भी तो थे खेवनहार,
तुमको भी दी थी पतवार।
मझधारों में नाव फँसा के,
सबको उल्टी राह दिखा के।।
छोड़ सफीना भागे तुम,
बोलो ये है किसकी भूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।
खिलने वाली कली न नोचो,
नव पीढ़ी का भी कुछ सोचो।
क्या उसको हम देकर जायें,
आओ मिलकर देश बनायें।।
अपनी बगिया का वो माली,
कोशिश करता महकें फूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।
✍डॉ पवन मिश्र
तुमको क्यूँ लगता है शूल।
तुम भी तो थे खेवनहार,
तुमको भी दी थी पतवार।
मझधारों में नाव फँसा के,
सबको उल्टी राह दिखा के।।
छोड़ सफीना भागे तुम,
बोलो ये है किसकी भूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।
खिलने वाली कली न नोचो,
नव पीढ़ी का भी कुछ सोचो।
क्या उसको हम देकर जायें,
आओ मिलकर देश बनायें।।
अपनी बगिया का वो माली,
कोशिश करता महकें फूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।
✍डॉ पवन मिश्र
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