जल रही घाटी नज़ारे जल रहे हैं।
सैनिकों पर आज पत्थर चल रहे हैं।।
बाढ़ आंधी से बचाते नस्ल उनकी।
और रक्षक ही उन्हें अब खल रहे हैं।।
फूल की देवी बताओ मौन क्यूँ हो ?
जब सपोले मेरी माँ को छल रहे हैं।।
क्यारियाँ केसर की मुरझाने लगीं अब।
हुक्मरां बस हाथ बैठे मल रहे हैं।।
आपसे उम्मीद थी माँ भारती को।
आप भी माहौल में अब ढल रहे हैं।।
छोड़ दो गीता उठाओ अब सुदर्शन।
ख़ाक मंसूबे करो जो पल रहे हैं।।
✍ डॉ पवन मिश्र
Very Nice
ReplyDeleteआभार गोपाल जी
DeletePrayas sarahniy hai bhaiya
ReplyDeleteधन्यवाद अनुज
Deleteवर्तमान हालातों का सटीक वर्णन ��
ReplyDeleteआभार गुरुदेव
DeleteBahut achi panktiya Guru ji ..:)
ReplyDeleteधन्यवाद बच्चा
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