मेरे किरदार में वो है मेरे दिन रात में है।
याद कैसे न करूँ जज़्ब खयालात में है।।
मेरे आईने में इक अक़्स उभरने है लगा।
देख ये कैसा असर एक मुलाकात में है।।
लब पे मुस्कान लिये आ तो गया महफ़िल में।
*एक तूफ़ान सा लेकिन मेरे जज़्बात में है।।*
देगा फिर कौन जवाबों को मेरे, तू ही बता।
रहनुमा ही जो घिरा आज सवालात में है।।
बदहवासी में चरागों को बुझाने वाली।
ए हवा देख तो ले क्या मेरी औक़ात में है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
जज़्ब= समाया हुआ
*दाग देहलवी साहब का मिसरा
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