पसीना भी छुपाता है वो आंसू भी छुपाता है।
अरे वो बाप है जज़्बात कब खुल के जताता है।।
समंदर पार करने को वो बच्चों के लिये अपने।
कभी क़श्ती बनाता है कभी पतवार लाता है।।
परों पे अपने ढोता है वो नन्हें से परिंदे को।
लिये ख़्वाबों की नगरी में फ़लक के पार जाता है।।
उसे तूफ़ान बारिश कुछ नहीं दिखती मुहब्बत में।
थपेड़े सारे सह कर भी घरौंदा वो बनाता है।।
बहुत कम ज़र्फ़ है जो बाप को तकलीफ दे, लेकिन।
दुआओं में कहां वालिद उसे भी भूल पाता है।।
कसीदे शान में उसकी मुझे पढ़ने की कूवत दे।
जो काँधे पे बिठा दुनिया का हर मेला घुमाता है।।
ज़मीं पे वो फरिश्ता है पवन की दीद में यारों।
खपा कर जिंदगी अपनी जो बच्चों को बनाता है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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