अधूरी ख्वाहिशों का बोझ मेरे दिल पे है अब तक।
कि समझेगा वो बातें कब जो ठहरी हैं मेरे लब तक।।
मनाकर हार बैठे हैं लो अब तकदीर पर छोड़ा।
चलो अब देखते हैं आप रूठोगे भला कब तक।।
खुदा कब तक न आएगा हमारे सामने देखें।
कि हम भी दर न छोड़ेंगे दिखेगा वो नहीं जब तक।।
इबादत तब मेरी होगी मुकम्मल इस ज़माने में।
पहुंच जाएँगी जब दिल की सदायें मेरे उस रब तक।।
तुम्हे जाना है तो जाओ रहेगी याद इस दिल में।
रहेंगी मुन्तज़िर आँखे हमारी आखिरी शब तक।।
रगों में खून जब तक और धड़कन दिल की बाकी है।
भरोसा हौसलों का ही करेगा ये पवन तब तक।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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