Wednesday, 25 April 2018

ग़ज़ल- सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें


कभी मंदिर कभी मस्ज़िद कभी प्रतिकार की बातें।
सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें।।

कभी तकरार की बातें कभी इनकार की बातें।
अरे सँगदिल कभी तो टूट कर कह प्यार की बातें।।

नहीं लगता कहीं ये दिल नजारों में नहीं रंगत।
मुझे बस याद आती हैं मेरे दिलदार की बातें।।

कहूँ कुछ भी करूँ कुछ भी तुम्हें बस दाद देनी है।
यही फरमान आया है सुनो सरकार की बातें।।

वतन के वास्ते कर्तव्य अपने भूल बैठा है।
लिए झंडे फ़क़त करता है वो अधिकार की बातें।।

सियासतदां यहां मशगूल हैं बस ज़रपरस्ती में।
कहाँ फ़ुर्सत इन्हें जो सुन सकें लाचार की बातें।।

गरीबी भी मिटेगी अम्न भी अब मुल्क में होगा।
चुनावी साल है प्यारे सुनो सरकार की बातें।।

तेरी मीज़ान में ताकत नहीं जो तौल पाएगी।
मेरी ग़ज़लें बताएंगी मेरे किरदार की बातें।।

                                 ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सँगदिल= पत्थर दिल
ज़रपरस्ती= धन का लोभ
मीज़ान= तराजू

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