बजबजाती नालियों में रह रहा है आदमी।
मौन है देखो सियासत सह रहा है आदमी।।
मौन है देखो सियासत सह रहा है आदमी।।
उस खुदा ने क्या अता कर दीं जरा सी नेमतें।
आज अपने को खुदा ही कह रहा है आदमी।।
आज अपने को खुदा ही कह रहा है आदमी।।
ख़ौफ़ का मंज़र ज़माने में है दिखता आजकल।
आदमी के ज़ुल्म देखो सह रहा है आदमी।।
आदमी के ज़ुल्म देखो सह रहा है आदमी।।
छोड़कर अपनी जड़ों को जबसे उड़ने ये लगा।
ताश के पत्तों के जैसे ढह रहा है आदमी।।
ताश के पत्तों के जैसे ढह रहा है आदमी।।
आँख पर पट्टी चढ़ाए ज़रपरस्ती की पवन।
किस हवा के साथ देखो बह रहा है आदमी।।
किस हवा के साथ देखो बह रहा है आदमी।।
✍ *डॉ पवन मिश्र*
ज़रपरस्ती= पैसे की पूजा करना
ज़रपरस्ती= पैसे की पूजा करना
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