Sunday, 10 June 2018

ग़ज़ल- कई दिन से



मैं हूँ खुद से ख़फ़ा कई दिन से।
सिलसिला चल रहा कई दिन से।।

मेरे कमरे में आइना था इक।
वो भी है लापता कई दिन से।।

दिल ये बेजार इश्क़ से है अब।
सिसकियाँ ले रहा कई दिन से।।

कुछ गलतफहमियां हुईं शायद।
बढ़ रहा फ़ासला कई दिन से।।

ज़ह्र, नफरत, घुटन लिए सँग में।
चल रही है हवा कई दिन से।।

मुन्तज़िर है पवन चले आओ।
तक रहा रास्ता कई दिन से।।

          ✍ डॉ पवन मिश्र

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