Monday, 18 March 2019

दोहे- चौकीदार

2019 के पूर्वार्द्ध के राजनैतिक परिदृश्य के सम्बंध में-

चोरों की तो मौज थी, कुछ दिन पहले यार।
आया चौकीदार तो, देखो चोर फरार।१।

बाहर भी बेचैन हैं, जो थे चोर फरार।
लंदन तक दौड़ा रहा, अपना चौकीदार।२।

नए नए प्यादे दिखे, करते अत्याचार।
*पंजा* हमें दिखा रहे, जाति के ठेकेदार।३।

दादी की पोती कहे, देखो मेरी नाक।
सुन कर चिल्लाने लगे, कांव कांव सब काक।४।

उनका अपना शोध है, जो आई ये बात।
वंश पूजकों को दिया, नाक भरी सौगात।५।

चोरों में हड़कंप है, यह तो दिखता साफ।
समय दिखायेगा इन्हें, जनता का इंसाफ।६।

गठबंधन की चाह में, कजरी है बीमार।
आमादा गू हेतु ज्यों, शूकर कोई यार।७।

उस बबुआ अकलेस का, हुआ हाल बेहाल।
बाप अलग रेले पड़ा, चाचा भी हैं लाल।८।

कुंभ नहाते फिर रहे, जो थे रोजेदार।
राजनीति के मायने, बदले चौकीदार।९।

पपुआ ममता केजरी, सारें हैं बेकार।
इन सबसे इक्कीस है, अपना चौकीदार।१०।

बक बक कोरी त्याग कर, आये कोई वीर।
खुद में हो गर शक्ति तो, खींचें बड़ी लकीर।११।

नहीं दूध का है धुला, माना चौकीदार।
लेकिन जितने पात्र हैं, ये सबसे दमदार।१२।

दीपक के बिन रात में, कैसे हो उजियार।
राह तक रहा आपकी, कब से चौकीदार।१३।

भक्त कहो या तुम कहो, मुझको चौकीदार।
लोकतंत्र के पर्व हित, मैं बैठा तैयार।१४।

अब बारी है आपकी, कर लो सोच विचार।
कैसा हो इस देश का, अगला चौकीदार।१५।
                   
                              ✍️ डॉ पवन मिश्र

#MainBhiChowkidar

Sunday, 17 March 2019

दोहे- मैं भी चौकीदार


आई निर्णय की घड़ी, होने लगे विचार।
बोल रहे समवेत सब, *मैं भी चौकीदार*।१।

चोरों के कुल में सुनो, मचता हाहाकार।
हर घर जब कहने लगा, *मैं भी चौकीदार*।२।

बूढ़ा हो या हो युवा, कहता है ललकार।
चोरों की ना ख़ैर अब, *मैं भी चौकीदार*।३।

लोकतंत्र के पर्व में,  देश प्रेम का ज्वार।
गली गली में शोर है, *मैं भी चौकीदार* ।४।

गलबहियां करने लगे, शूकर श्वान सियार।
हर मनु जब कहने लगा, *मैं भी चौकीदार* ।५।

खुशियों की सौगात है, होली का त्यौहार।
फागुन का झोंका कहे, *मैं भी चौकीदार*।६।

                              ✍️ *डॉ पवन मिश्र*
#MainBhiChowkidar

Sunday, 10 March 2019

ग़ज़ल- ज़ुबां कुछ भी नही कहती मगर वो जान लेते हैं



ज़ुबां कुछ भी नही कहती मगर वो जान लेते हैं।
हमारे दिल की बेताबी को वो पहचान लेते हैं।।

बताओ किस तरह उनकी मुहब्बत का करूँ चर्चा।
मुझे ही प्यार करते हैं मेरी ही जान लेते हैं।।

अजब दुनिया मुहब्बत की अजब दस्तूर हैं इसके।
दिवाने दिल मुहब्बत को खुदा ही मान लेते हैं।।

जरा सी आग दिखलाकर डराओगे हमें कैसे ?
निगल जाते हैं सूरज भी अगर हम ठान लेते हैं।।

दगा क्या है वफ़ा क्या है उसी ने तो बताया है।
हम अपनी पीठ पर ख़ंजर का ये एहसान लेते हैं।।
                                     
                                   ✍ डॉ पवन मिश्र