दर्द से थक हार कर जो लोग मयख़ाने गये।
लौट कर आये नही जितने भी दीवाने गये।।
रात भर पीता रहा मैं उनकी आंखों से शराब।
और मुझको ढूंढने को लोग मयख़ाने गये।।
इश्क दरिया आग का है जानते थे वो मगर।
शम्अ फिर भी चूमने बेख़ौफ़ परवाने गए।।
अब हमारे अलबमों में फोटुएं उनकी नहीं।
रफ़्ता रफ़्ता ज़ेह्न से भी सारे अफ़साने गए।।
कोशिशे जिनकी न मानीं हारकर चुप बैठना।
इस जहां में मंजिलों तक वो ही दीवाने गए।।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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