साहब की आई है सत्ता देखो ना।
रंग-ढंग और कपड़ा लत्ता देखो ना।।
दादी पापा भी पहले भरमाते थे।
अब पपुआ बांटेगा भत्ता देखो ना।।
गुरबत और सियासी चालों में फँसकर।
मरने को मजबूर है नत्था देखो ना।।
तुम बिन बगिया सूनी सूनी लगती है।
मुरझाया है पत्ता पत्ता देखो ना।।
मरघट पे बहती नदिया दिखलाती है।
मानव तन कागज़ का गत्ता देखो ना।।
छेड़ नहीं तू शांत पवन को ऐ नादां।
बर्रैया का है ये छत्ता देखो ना।।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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