स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
वर्षों की तड़पन है प्यारों खूब जमेगा रंग,
बाबा भोले की नगरी में होना है हुड़दंग।
कतकी मेला के पहले ही मिलना है दीवानों,
शमा जली है स्नेह मिलन की आ जाओ परवानों।।
जल्दी से अब टिकट करा लो हो न जाये देर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
पहली बार किशनपुर वाले भूल गए क्या वो पल,
एकडला के गन्नों का रस वो यमुना का कल-कल।
याद नहीं क्या प्रथम मिलन की नेह भरी वो बतिया,
जौ मकई की सोंधी रोटी वो अमरूद की बगिया।।
वाणी के उस प्रथम मंच से खूब दहाड़े शेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
दूजी बार गए ददरा अब्दुल हमीद के गांव,
अबकी बार थी अमराई और उसकी ठंडी छाँव।
चटक धूप में सभी मगन थे नेह की चादर ताने,
ढोल मंजीरे से उल्लासित कजरी के दीवाने।।
उमड़ घुमड़ कर वही भाव फिर हमें रहा है टेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
उसके बाद सभी वाणीजन पहुंचे थे इक मरुथर,
कुछ ने पकड़ी ट्रेन हावड़ा कुछ ने थामी मरुधर।
ग्राम उदासर ने अद्भुत सत्कार किया था सबका,
राजस्थानी भोजन था और था वाणी का तबका।।
अद्भुत मंच सजा था उस दिन नगर था बीकानेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा है काशी हेर।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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