यह भारतवर्ष महान मेरा,
अनमोल छटा ज्यों इंद्रधनुष।
भूखण्ड नहीं यह मात्र कोई,
है देवतुल्य यह राष्ट्रपुरुष।।
मस्तक हिम शिखरों का आलय,
स्वर्गानुभूति सा मेघालय।
कटि के जंगल हैं हरे-भरे,
पद के नीचे सागर लहरे।
पर्वत श्रेणी नदियों का जाल,
गंगा यमुना सरयू विशाल।
मैदानी हरित प्रदेश यहाँ,
अनगिन भाषा और भेष यहाँ।
तिनके तिनके में ब्रह्म अंश,
वेदों की गति वंशानुवंश।
सभ्यता सनातन चिर महान,
प्रस्तर-प्रस्तर देता प्रमान।
सम्यक विचार सम्यक सुदृष्टि,
माने कुटुम्ब हम सकल सृष्टि।
शिव-शिखा छोड़कर भारत में,
सुरसरि धोती हर पाप कलुष।
है देवतुल्य यह राष्ट्रपुरुष।।
इसकी गोदी में राम पले,
घुटनों के बल श्रीकृष्ण चले।
यह तप माता अनसुइया का,
गार्गी का सीता मइया का।
गौतम नानक की बानी है,
यह हरिश्चन्द्र सा दानी है।
मानस गीता रामायण है,
यह स्वयं रूप नारायण है।
इसकी पद रज को पाने को,
सृष्टा भी आतुर आने को।
वामन वराह और परशुराम,
धन्वन्तरि का यह पुण्य धाम।
हो भैरव या वृषभावतार,
दुर्वासा या अंजनि कुमार।
इस देवभूमि पर कोटि देव,
अवतरित हुए धर रूप मनुष।
है देवतुल्य यह राष्ट्रपुरुष।।
यह वीर शिवा का शौर्य गान,
राणाप्रताप का स्वाभिमान।
राणा सांगा के घावों में,
कुम्भा के अतुलित भावों में।
आल्हा-ऊदल की प्रखर शक्ति,
रानी लक्ष्मी की देश भक्ति।
जल गई आन हित धू-धू कर,
ये वीर पद्मिनी का जौहर।
यह विष्णुगुप्त की शिक्षा में,
सागर सी धैर्य परीक्षा में।
अशफ़ाक भगत सावरकर हों,
बिस्मिल सुभाष या शेखर हों।
गांधी पटेल गोखले तिलक,
जो मृत्यु बाद भी रहे चमक।
सुंदर इस भारत बगिया में,
अनगिन ऐसे हैं वीर तरुश।
है देवतुल्य यह राष्ट्रपुरुष।।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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