प्रेम विषय अध्यात्म का, एक अनन्ताकाश।
दैहिक इसमें कुछ नहीं, अंतर्मन की प्यास।१।
प्रेम पुण्य पावन प्रखर, ज्यों गंगा की धार।
क्षुद्र स्वार्थ हित दुष्टजन, करते बस व्यभिचार।२।
लिए छलावा प्रेम का, करते लव जेहाद।
नहीं धरा पर और हैं, इनके सम जल्लाद।३।
सूटकेस का कभी तो, फ्रिज का कभी प्रयोग।
तथाकथित प्रेमी फिरें, मन में लेकर रोग।४।
श्रद्धा मन में थी नहीं, कैसे रखता मान।
पैंतिस टुकड़ों में मिली, एक बाप की जान।५।
प्रतिक्षण होता जा रहा, कब तक देखें ह्रास।
नैतिक मूल्यों के लिये, मिलकर करें प्रयास।६।
सम्बन्धों में प्रेम हो, सबका हो सम्मान।
सुता पुत्र को दीजिये, नैतिकता का ज्ञान।७।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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