जीवन जैसे जलता मरुथल,
कैसे तपन मिटाएं।
किसके कांधे सर रख दें हम,
किसको पीर सुनाएं।।
बदल गया परिवेश विश्व का,
बदल गयी हर काया।
पीछे-पीछे भाग रहे सब,
आगे-आगे माया।
अर्थमोह की बंजर भू पर,
कैसे पुष्प खिलाएं।
किसके कांधे सर रख दें हम,
किसको पीर सुनाएं।।
मूल लक्ष्य जीवन का भूले,
भंगुर धन ही सपना।
अपनी-अपनी ढपली सबकी,
गाना अपना-अपना।
पाषाणों के इस जंगल में,
नीर कहाँ हम पाएं।
किसके कांधे सर रख दे हम,
किसको पीर सुनाएं।।
सम्बन्धों में प्रेम नहीं अब,
मतलब के हैं साथी।
स्वार्थ तैल से ऊर्जा पाकर,
जलती जीवन बाती।
आहत मन की ये सब बातें,
जाकर किसे बताएं।
किसके कांधे सर रख दें हम,
किसको पीर सुनाएं।।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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