मेरी आँखों में एक चेहरा है
जिसके होने से मेरा होना है
बन्दगी बस उसी की करता हूँ
दिल में मेरे फ़क़त वो रहता है
उन समंदर सी गहरी आंखों में
मुझको जाना है डूब जाना है
पूरा चेहरा अभी पढ़ें कैसे
दिल अभी एक तिल पे अटका है
क्यूँ निहारूँ फ़लक मैं रातों में
मेरे हुजरे में चांद रक्खा है
कौन किसमें समायेगा बोलो
एक दरिया है एक सहरा है
क्यूं ज़रीआ बने ज़माना ये
मुझसे आकर कहो जो कहना है
आज उसने छुड़ा लिया दामन
आज दिल ज़ार ज़ार रोया है
ज़ख़्म देकर नमक भी है देती
यार मेरे यही तो दुनिया है
साथ देती नहीं कभी क़िस्मत
काहिलों का यही तो रोना है
बाद उसके पवन तुम्हारा दिल
उसकी यादों का गोशवारा है
✍️ डॉ पवन मिश्र
सहरा- मरुस्थल
हुजरा- कमरा, कोठरी
गोशवारा- एकांत स्थान
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