बनाया रहनुमा जिनको उन्हीं के हम सताए हैं
जिताया था जिन्हें हमने उन्हीं से मात खाए हैं
जुगलबंदी सियासत में अजब सी हो रही देखो
जो कल तक धुर विरोधी थे वही सब साथ आए हैं
क़ज़ा आएगी जब मिलने नुमायां हो ही जायेगा
जिन्हें अपना समझते हो वो सब के सब पराए हैं
इन्हें कमतर समझकर ज्ञान देना भूल ही होगी
ये बच्चे आजकल के दौर के सीखे सिखाए हैं
बड़े जबसे हुए बच्चे बहुत सँकरा हुआ आंगन
अजब हालात बूढ़े बाप के जीवन में आए हैं
करोना और उसपे शह्र की बेदर्द दीवारें
तभी तो गांव के कच्चे घरौंदे याद आए हैं
अक़ीदत है इबादत है मुहब्बत एक नेमत है
मगर वहशी दरिंदों ने इसे नश्तर चुभाए हैं
✍️ डॉ पवन मिश्र
क़ज़ा- मृत्यु
नुमायां- स्पष्ट
अक़ीदत- भरोसा
इबादत- प्रार्थना
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