अभी मंज़िल कहाँ ? रस्ता बहुत है
अभी आगाज़ है, चलना बहुत हैफ़कत पतवार थामा है अभी तो
थपेड़ों से अभी लड़ना बहुत है
खुदी पर है नहीं जिसको भरोसा
मुसीबत देखकर रोता बहुत है
समझ पाया नहीं ऐ इश्क़ तुझको
तेरा किरदार पेचीदा बहुत है
निभेगा किस तरह बोलो ये रिश्ता
हमारे दरमियां पर्दा बहुत है
चलो झूठा दिलासा ही सही पर
कभी तो बोल दो चाहा बहुत है
छुपा लेता हूँ अश्कों को मगर सुन
तेरा जाना मुझे चुभता बहुत है
सफ़र के अंत में जाना पवन ने
मिला कुछ भी नहीं खोया बहुत है
✍️ डॉ पवन मिश्र
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