गीत- सावन बीता जाए
सावन बीता जाए
सखी री,
सावन बीता जाए
तपता जेठ जलाता था तन
विरह अगन झुलसाती थी मन
उम्मीदों में दिन काटे थे
गलबहियों में सन्नाटे थे
जेठ बिताया तपते-तपते
आषाढ़ी भी रस्ता तकते
लेकिन अब तो सावन है जी
बरखा भी मनभावन है जी
तपती भू पर भगवन बरसे
मेरे नयना फिर भी तरसे
बोलो साजन कब आओगे
जीवन रीता जाए
सखी री,
सावन बीता जाए
जब से सावन ऋतु आई है
सारी धरती हरियाई है
महक रही डारी-डारी
फूल रही हैं सब फुलवारी
लेकिन मेरा आंगन सूना
पिय के बिन यह सावन सूना
सूना घर है सेज है सूनी
तकिया ही बस है बातूनी
मन ही मन हम रो लेते हैं
सुधियों में ही खो लेते हैं
बेकल हिरदय जोहे तुमको
आंसू पीता जाए
सखी री,
सावन बीता जाए
पिया बिन
जीवन रीता जाए
सखी री,
सावन बीता जाए
✍️ डॉ पवन मिश्र
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