हारे का हरिनाम, सहारा बन जाता है।
किंतु मित्र यह भाव, कर्म से विलगाता है।
सोचो, करो विचार, हार का कारण क्या है?
क्या है इसका साध्य, और निस्तारण क्या है?१?
कर्महीन के पास, बहाने लाखों होते।
आलस में दिन-रात, काटते रोते-रोते।
कुंठित और निराश, मनुज कब सुख पाते हैं।
दुख की चादर तान, डूबते उतराते हैं।२।
मात्र एक है मंत्र, लक्ष्य तक जो पहुँचाए।
कर्मशील इंसान, संकटों से भिड़ जाए।
आशाओं का दीप, जलाकर रखना होगा।
कुंदन की है चाह, अगर तो तपना होगा।३।
दुख की काली रात, बीतने को है साथी।
थोड़ा और प्रयास, बचा लो बुझती बाती।
अंतस का विश्वास, तुम्हारे दुख हर लेगा।
सुख का नवल प्रभात, द्वार पर दस्तक देगा।४।
✍️ डॉ पवन मिश्र
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