विरह के ताप से मुझको जरा आराम दे दें
मेरे ईश्वर मुझे अब तो मेरा घनश्याम दे दें
हमारे दरमियाँ जो है उसे अंजाम दे दें
चलो दुनिया की ख़ातिर ही अब इसको नाम दे दें
बड़ी उम्मीद से आया हूँ अपनी प्यास लेकर
गुज़ारिश है मुझे भी साग़र-ए-ज़रफ़ाम दे दें
ख़ता किसकी रही किसकी नहीं अब छोड़िए भी
हमारा सर ये हाज़िर है इसे इल्ज़ाम दे दें
अना को छोड़कर आओ सजाएं फिर चमन को
गुलों को रंग-ओ-बू दे दें सुहानी शाम दे दें
चरागों की हिफ़ाज़त में लगे हैं आज से हम
हवाओं को हमारा आप ये पैगाम दे दें
✍️ डॉ पवन मिश्र
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