कुछ न कारोबार है तेरे बग़ैर
बे-मज़ा इतवार है तेरे बग़ैर
बे-मज़ा इतवार है तेरे बग़ैर
रंग होली का न दीवाली का नूर
सूना हर त्यौहार है तेरे बग़ैर
आ भी जा अब दिल नहीं लगता कहीं
यार ये बेज़ार है तेरे बग़ैर
किसके कांधे पर रखूं सर बोल दे
कौन याँ गमख़्वार है तेरे बग़ैर
धार की मर्जी से ही बहना है अब
नाव बे-पतवार है तेरे बग़ैर
तुझसे ही था जीत का इक हौसला
अब तो केवल हार है तेरे बग़ैर
दिन तो दिन है जागना उसकी नियति
रात भी बेदार है तेरे बग़ैर
ज़ुल्मत-ए-शब की कहे किससे पवन
चांदनी अंगार है तेरे बग़ैर
✍️ डॉ पवन मिश्र
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