(अयोध्या में रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के वर्तमान हालात के सम्बंध में मत्त सवैया छन्द आधारित अभिव्यक्ति)
धर्म प्राण है राजनीति का
राजनीति और राष्ट्रनीति का
लेकिन कुत्सित खद्दरधारी
लोकतंत्र के कुछ व्यापारी
राजनीति सुविधा की करते
नई-नई परिभाषा गढ़ते
पहले राम नहीं थे इनके
इस हित काम नहीं थे इनके
लेकिन अब वोटों के कारण
राम राम करते ये रावण
भर ललाट पर चंदन पोते
राजनीति का दुखड़ा रोते
लेकिन उनको ये बतलाओ
कोई तो जाकर समझाओ
छोड़ो सारी कारस्तानी
का बरसा जब कृषी सुखानी
तुमको भी तो समय मिला था
रजवाड़े में निलय मिला था
अपने पाप जरा धो लेते
पुण्य बीज कुछ तो बो लेते
भक्तों के कुछ दुख हर लेते
कुछ तो रामकाज कर लेते
लेकिन नीयत के तुम कारे
मुस्लिम तुष्टिकरण के मारे
हिन्दू हिय को तोड़ा तुमने
मंदिर से मुख मोड़ा तुमने
जबरन तुमने डाला ताला
राम काल्पनिक हैं, कह डाला
रक्षित करते रहे सदा तुम
पोषित करते रहे सदा तुम
ढांचे जैसी एक बला को
रखा टेंट में रामलला को
भारत माता के बच्चों पर
कारसेवकों के जत्थों पर
गोली तक चलवाई तुमने
सरयू लाल कराई तुमने
तुम कहते थे पाप नहीं है
कोई पश्चाताप नहीं है
फिर क्यूं खोज रहे आमंत्रण
अवधपुरी से मिले निमंत्रण
दम्भ हुआ सारा छू-मंतर
मंदिर बनते ही यह अंतर?
लेकिन जनता जान चुकी है
छल-प्रपंच पहचान चुकी है
रामधाम पर उसका हक है
रामलला का जो सेवक है
वर्षों से जो तपा-खपा है
निस दिन जिसने राम जपा है
मंदिर हित बलिदान दिया है
श्रम-धन छोड़ो प्राण दिया है
मुगलों को झुठलाया जिसने
मंदिर वहीं बनाया जिसने
बात एक बस यही सही है
जनता भी कह रही यही है
अब तक जो बस रहा राम का
श्रेय उसी को रामधाम का
अपने शीश नवाकर बोलो
दोनों हाथ उठाकर बोलो
भगवत वत्सल का ही नाम
जय-जय जय-जय जय श्री राम
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