अगर हो सोच ही जब अतिक्रमण की
कहाँ फिर बात होगी आचरण की
कहाँ फिर बात होगी आचरण की
कलुष अंतःकरण में बढ़ रहा है
मगर चिन्ता उन्हें बस आवरण की
गहन निद्रा में सब डूबे हुए हैं
मशालें कौन थामे जागरण की
रहेगा लोभ का रावण जहां भी
बनेगी योजना सीता हरण की
विचारों के लिये लड़ना ही होगा
कठिन वेला है मित्रों संक्रमण की
कई ढांचे कथाएं कह रहे हैं
हमारी अस्मिता पर आक्रमण की
✍️ डॉ पवन मिश्र
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