ये रातें अब नहीं कटतीं तपन की
प्रतीक्षा है तुम्हारे आगमन की
अधर को चाह है अधरों की तेरे
नयन को रूप-रस के आचमन की
मिलन ही प्रेम का है सत्य अंतिम
नही है बाध्यता जीवन-मरण की
दिखेगा आप के भीतर ही स्रष्टा
मिलेगी दृष्टि जब अंतर्नयन की
कभी समझे नहीं रामत्व क्या है
कथाएं कह रहे बस वनगमन की
बुराई ही दिखे जिनको चतुर्दिक
जरूरत है उन्हें स्व-आकलन की
कदाचित भूल जाएं लोग मुझको
तुम्हे तो याद आएगी पवन की ??
✍️ डॉ पवन मिश्र
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