तुम्हारे घर जो बरकत आ रही है
वो बेटी की बदौलत आ रही है
वो बेटी की बदौलत आ रही है
तुम्हारे साथ का शायद असर है
बदन में कुछ हरारत आ रही है
छुआ जबसे है तुमने यार मुझको
रकीबों की शिकायत आ रही है
सुकूँ से नींद लेना चाहता हूँ
मगर उनको शरारत आ रही है
बना है जो मेरी नींदों का दुश्मन
उसी से बू-ए-रिफ़ाक़त आ रही है
चुनावी साल है तो रहनुमा को
गरीबों पर मुहब्बत आ रही है
✍️ डॉ पवन मिश्र
बू-ए-रिफ़ाक़त- दोस्ती की महक
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