अना को ओढ़कर रक्खा हुआ है
दिखावे में बशर उलझा हुआ है
कभी क्या आईने से गुफ़्तगू की ?
कभी खुद से भी क्या मिलना हुआ है ?
रक़ीबों की सजी थी रात महफ़िल
हमारा रात भर चर्चा हुआ है
तुम्हारे बिन हमारी ज़िंदगी में
बताएं क्या तुम्हें क्या क्या हुआ है
छुड़ाकर हाथ तुम ही तो गए थे
पवन तो आज भी ठहरा हुआ है
✍️ डॉ पवन मिश्र
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