Thursday, 19 May 2016

ग़ज़ल- मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं


मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं।
कुछ भी कह लो मगर वो जवानी नहीं।।

वक्त है अब भी सँभलो मेरे दोस्तों।
ये जवानी के दिन ग़ैरफ़ानी नहीं।।

नाकसी रहनुमाओं की क्या हम कहें।
लगता है आँख में इनके पानी नहीं।।

नाम उसका भले हो किताबों में गुम।
मीरा जैसी कोई तो दीवानी नहीं।।

जाते जाते बता दे ऐ हमदम मेरे।
लाज़मी क्या कोई भी निशानी नहीं।।

उनके बिन चाँद भी लगता फ़ीका हमें।
रातें लगती हमें अब सुहानी नहीं।।

उन घरों की दीवारें दरक जाती हैं।
नीव में जिनके ईंटे पुरानी नहीं।।

                   ✍डॉ पवन मिश्र

नाकसी= नीचता, अधमता
ग़ैरफ़ानी= शाश्वत


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