इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।
क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाईयाँ।।
चाहता हूं डूबना आगोश में।
ऐ समंदर तू दिखा गहराईयाँ।।
दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?
रात भर बजती रही शहनाईयाँ।।
तुम गये तो जिंदगी तारीक है।
हो गयी दुश्मन सी अब रानाईयाँ।।
दूर हो जाये जड़ों से ये 'पवन'।
ऐ खुदा इतनी न दे ऊँचाईयाँ।।
✍ डॉ पवन मिश्र
बशर= आदमी
तारीक= अंधकारमय
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