*दिनांक 18/09/16 को हुए उरी हमले के संदर्भ में*
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नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।
रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।
सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।
चींख रही हैं बहिने फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।
सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।
प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।
अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।
माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।
वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली मानेगी।
आर-पार का अंतिम निर्णय, कब ये दिल्ली ठानेगी।।
दिल काला है खूं है काला, कब कालों को जानेगी।
कुत्ते की दुम टेढ़ी रहती, सच ये कब पहचानेगी।३।
अबकी प्रश्न नहीं हैं उनसे, पूछ रहा हूं दिल्ली से।
कब तक शावक ही हारेंगे, कायर कुत्सित बिल्ली से।।
कैसे मोल चुकाओगे तुम, इन सत्रह बलिदानों का।
जंग लग रही तलवारों में, मुँह खोलो अब म्यानों का।४।
✍डॉ पवन मिश्र
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नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।
रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।
सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।
चींख रही हैं बहिने फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।
सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।
प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।
अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।
माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।
वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली मानेगी।
आर-पार का अंतिम निर्णय, कब ये दिल्ली ठानेगी।।
दिल काला है खूं है काला, कब कालों को जानेगी।
कुत्ते की दुम टेढ़ी रहती, सच ये कब पहचानेगी।३।
अबकी प्रश्न नहीं हैं उनसे, पूछ रहा हूं दिल्ली से।
कब तक शावक ही हारेंगे, कायर कुत्सित बिल्ली से।।
कैसे मोल चुकाओगे तुम, इन सत्रह बलिदानों का।
जंग लग रही तलवारों में, मुँह खोलो अब म्यानों का।४।
✍डॉ पवन मिश्र
भावनाओं को अभिव्यक्ति करती सार्थक रचना शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि ��
ReplyDeleteभावनाओं को अभिव्यक्ति करती सार्थक रचना शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि ��
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