छुआ उसने तो चंदन हो गया है।
ये जीवन एक मधुबन हो गया है।।
बताऊँ क्या तुम्हे जबसे मिला वो।
मेरे सीने की धड़कन हो गया है*।।
मुसीबत के पहाड़ों से उलझ कर।
बड़ा पथरीला बचपन हो गया है।।
पुकारे अब किसे सीता बिचारी।
लखन भी आज रावन हो गया है।।
हज़ारों चूहे खाकर आज बिल्ला।
सुना है पाक़ दामन हो गया है।।
बड़े जबसे हुए हैं घर के बच्चे।
बहुत सँकरा सा आँगन हो गया है।।
सुनो मत आजमाना इस 'पवन' को।
तपा कर खुद को कुंदन हो गया है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
* आदरणीय समर कबीर साहब का मिसरा
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