महज इक ख़ामुशी है और मैं हूँ।
कि आँखों में नमी है और मैं हूँ।।
बिना उनके कहाँ रानाइयाँ अब।
घनी ये तीरगी है और मैं हूँ।।
बिखर जाऊँ न मैं आकर सँभालो।
*बड़ी नाजुक घड़ी है और मैं हूँ*।।
गया जबसे पिलाकर वो नज़र से।
उसी की तिश्नगी है और मैं हूँ।।
सुनेगा कौन मेरे दिल की बातें।
फ़क़त तन्हाई ही है और मैं हूँ।।
चले आओ जहाँ भी तुम छुपे हो।
फिजा ये ढूँढती है और मैं हूँ।।
उधर धोखे ही धोखे हर कदम पर।
इधर बस आशिकी है और मैं हूँ।।
✍ डॉ पवन मिश्र
तीरगी= अंधेरा तिश्नगी= प्यास
*इंदिरा वर्मा जी का मिसरा
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