तू ही तू दिख रहा है मैं नहीं हूँ।
ये सब कुछ ही तेरा है मैं नहीं हूँ।।
मेरे आईने में जो आजकल है।
यकीं मानो खुदा है मैं नहीं हूँ।।
उसी का ही कोई होगा करिश्मा।
*जो मुझमें बोलता है मैं नहीं हूँ*।।
चुरा कर दिल मेरा देखो जरा तो।
वो सबको बोलता है मैं नहीं हूँ।।
सुना लाखों हैं तेरी भीड़ में अब।
मुझे इतना पता है मैं नहीं हूँ।।
गलतफहमी उसे शायद कोई है।
जिसे वो ढूंढता है मैं नहीं हूँ।।
फ़दामत से उसे मंजिल मिली पर।
अकेला ही खड़ा है मैं नहीं हूँ।।
कचोटे है तुझे जो रात दिन वो।
तेरे दिल की सदा है मैं नहीं हूँ।।
✍ डॉ पवन मिश्र
फ़दामत= अन्याय, अनीति
*कबीर वारिस साहब का मिसरा
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