एकात्म मानववाद की,
परिकल्पना का मान हो।
अंग्रेजियत की भीड़ में,
हिंदी का जब सम्मान हो।
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
वंचितों की भीड़ में जो,
अंत में बेबस खड़ा है।
वस्त्र वंचित देह भीतर,
भूख लेकर जो पड़ा है।।
बजबजाती नालियों से,
रात दिन जो जूझता है।
अश्रुपूरित नैन में जो,
स्वप्न लेकर घूमता है।।
उस मनुज का उत्थान हो,
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
चीथड़ों से तन लपेटे,
वक्ष पे नवजात बाँधे।
अनवरत जो चल रही है,
पीठ पर संसार साधे।।
जीवन थपेड़ों से यहाँ,
किंचित नहीं भयभीत जो।
नित कंटकों से लड़ रही,
साहस के गाती गीत जो।।
उस नार का सम्मान हो,
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
✍ डॉ पवन मिश्र
परिकल्पना का मान हो।
अंग्रेजियत की भीड़ में,
हिंदी का जब सम्मान हो।
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
वंचितों की भीड़ में जो,
अंत में बेबस खड़ा है।
वस्त्र वंचित देह भीतर,
भूख लेकर जो पड़ा है।।
बजबजाती नालियों से,
रात दिन जो जूझता है।
अश्रुपूरित नैन में जो,
स्वप्न लेकर घूमता है।।
उस मनुज का उत्थान हो,
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
चीथड़ों से तन लपेटे,
वक्ष पे नवजात बाँधे।
अनवरत जो चल रही है,
पीठ पर संसार साधे।।
जीवन थपेड़ों से यहाँ,
किंचित नहीं भयभीत जो।
नित कंटकों से लड़ रही,
साहस के गाती गीत जो।।
उस नार का सम्मान हो,
तब राष्ट्र का निर्माण हो।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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