Sunday, 20 August 2017

ग़ज़ल- अपने हौसलों को आज फिर से आजमाते हैं


चलो तूफान से लड़ने का कुछ जज़्बा दिखाते हैं।
कि अपने हौसलों को आज फिर से आजमाते हैं।।

मेरे जुगनू के आगे क्या तेरी औकात है सूरज।
ये तब भी रोशनी देता अँधेरे जब चिढ़ाते हैं।।

नहीं परवाह मौजों की न तूफानों से घबराहट।
समंदर चीर कर यारों सफ़ीने हम चलाते हैं।।

न चल पाओगे मेरे साथ तुम इस राह पर हमदम।
*मुझे तो आजकल बेदारियों में ख़्वाब आते हैं।।*

फ़लक का चांद भी बेदम नजर आता है तब मुझको।
झुका कर वो कभी जब भी नज़र फिर से उठाते हैं।।

मेरे हाथों में आईना है ख़ंजर तो नहीं कोई।
भला फिर लोग क्यूँ इतना पवन से खौफ़ खाते हैं।।

                                  ✍ डॉ पवन मिश्र

*अहमद नदीम कासिमी साहब का मिसरा

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