२१२२ १२१२ २२
दिल मेरा बेकरार सा क्यों है।
हर तरफ ही गुबार सा क्यों है।।
वो नहीं आयेगा मगर फिर भी।
आंखों को इंतजार सा क्यों है।।
इश्क़ कहते जिसे जमाने में।
एक झूठा करार सा क्यों है।।
आइना क्या कहीं दिखा उनको।
आज वो शर्मसार सा क्यों है।।
कत्ल उसने नहीं किया तो फिर।
पैरहन दागदार सा क्यों है।।
चोट खाकर भी दिल नहीं सँभला।
इश्क़ का फिर बुखार सा क्यों है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
गुबार= धूल
दिल मेरा बेकरार सा क्यों है।
हर तरफ ही गुबार सा क्यों है।।
वो नहीं आयेगा मगर फिर भी।
आंखों को इंतजार सा क्यों है।।
इश्क़ कहते जिसे जमाने में।
एक झूठा करार सा क्यों है।।
आइना क्या कहीं दिखा उनको।
आज वो शर्मसार सा क्यों है।।
कत्ल उसने नहीं किया तो फिर।
पैरहन दागदार सा क्यों है।।
चोट खाकर भी दिल नहीं सँभला।
इश्क़ का फिर बुखार सा क्यों है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
गुबार= धूल
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