212 212 212 212
वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।
मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।
मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।
देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।
कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।
और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।
सब चुनावी गणित नोट से हल किये।
जीत तो वो गये देश की हार है।।
चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।
बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।
अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।
शाख़ पर उल्लुओं की तो भरमार है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।
मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।
मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।
देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।
कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।
और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।
सब चुनावी गणित नोट से हल किये।
जीत तो वो गये देश की हार है।।
चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।
बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।
अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।
शाख़ पर उल्लुओं की तो भरमार है।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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