सुनो जिस रोज मेरे इश्क़ का सूरज ये निकलेगा।
अरे वो संगदिल आकर मेरी बाहों में पिघलेगा।।
मेरे भोले से इस दिल को दिखाते ख्वाब हो कोरे।
बताओ बस उमीदों से भला कब तक ये बहलेगा।।
बताओ बस उमीदों से भला कब तक ये बहलेगा।।
चमकना काम है उसका वो देगा नूर ही सबको।
अँधेरे की कहाँ हिम्मत मेरे जुगनू को निगलेगा।।
अँधेरे की कहाँ हिम्मत मेरे जुगनू को निगलेगा।।
बहुत हल्ला हुआ यारों चलो अब जंग हम छेड़ें।
रगों में बंद ही बस कब तलक ये ज्वार उबलेगा।।
रगों में बंद ही बस कब तलक ये ज्वार उबलेगा।।
भले कितनी मुहब्बत से उसे अमृत पिलाओ तुम।
सपोला है तो काटेगा वो हरदम ज़ह्र उगलेगा।।
सपोला है तो काटेगा वो हरदम ज़ह्र उगलेगा।।
न जाओ मैकदे में छोड़कर मुझको मेरे साकी।
पवन ये लड़खड़ाया तो बता फिर कैसे सँभलेगा।।
पवन ये लड़खड़ाया तो बता फिर कैसे सँभलेगा।।
✍ *डॉ पवन मिश्र*
संगदिल= पत्थर दिल
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