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करो कोशिश तो पत्थर टूटता है।
मेरी मानों तो अक्सर टूटता है।।
करो कोशिश तो पत्थर टूटता है।
मेरी मानों तो अक्सर टूटता है।।
हवाई ही महल जो बस बनाते।
उन्हीं आंखों का मंजर टूटता है।।
उन्हीं आंखों का मंजर टूटता है।।
अजब है इश्क़ की दुनिया दीवानों।
यहां अश्कों से पत्थर टूटता है।।
यहां अश्कों से पत्थर टूटता है।।
वफ़ा ही है हमारे दिल में लेकिन।
बताओ क्यूं ये अक्सर टूटता है।।
बताओ क्यूं ये अक्सर टूटता है।।
दरकती हैं जो ईंटें नींव की तो।
कहूँ क्या यार हर घर टूटता है।।
कहूँ क्या यार हर घर टूटता है।।
सुखनवर जानता है ये सलीका।
कलम से ही तो खंजर टूटता है।।
कलम से ही तो खंजर टूटता है।।
✍ *डॉ पवन मिश्र*
सुखनवर= कवि
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