डाका, रेप, गिरहकटी, संसद का व्यभिचार।
इन सबसे ही आजकल, भरा रहे अख़बार।।
भरा रहे अखबार, दिखाए हमको दुनिया।
नहीं सुरक्षित आज, बिचारे मुन्ना-मुनिया।।
अखबारों का किन्तु, अर्थ ही असली आका।
कीमत ले हर बार, डालते सच पे डाका।१।
भरा रहे अखबार, दिखाए हमको दुनिया।
नहीं सुरक्षित आज, बिचारे मुन्ना-मुनिया।।
अखबारों का किन्तु, अर्थ ही असली आका।
कीमत ले हर बार, डालते सच पे डाका।१।
भारत के गणतंत्र के, ये हैं चौथे खम्भ।
लेकिन इनमें भर गया, जाने कैसा दम्भ।।
जाने कैसा दम्भ, समझते खुद को ज्ञानी।
अधजल गगरी लाय, छलकता जाए पानी।।
कहे पवन ये धूर्त, झूठ की लिखें इबारत।
तार तार सम्मान, ज़ख्म ढोता है भारत।२।
लेकिन इनमें भर गया, जाने कैसा दम्भ।।
जाने कैसा दम्भ, समझते खुद को ज्ञानी।
अधजल गगरी लाय, छलकता जाए पानी।।
कहे पवन ये धूर्त, झूठ की लिखें इबारत।
तार तार सम्मान, ज़ख्म ढोता है भारत।२।
✍ डॉ पवन मिश्र
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