जमाने की रवायत में मेरी आवारगी कब तक।
ये फक्कड़पन रहे ,देखो रहे, ये शाइरी कब तक।।
ये फक्कड़पन रहे ,देखो रहे, ये शाइरी कब तक।।
तेरे दीदार को तरसी हैं आंखें रात भर मेरी।
मिलन की शबनमी बूँदें लिये तू आएगी कब तक।।
मिलन की शबनमी बूँदें लिये तू आएगी कब तक।।
ज़मीं ज़र दे दिया फिर भी पड़ोसी वो नहीं सुधरा।
बहुत कमज़र्फ़ है देखो निभाये दुश्मनी कब तक।।
बहुत कमज़र्फ़ है देखो निभाये दुश्मनी कब तक।।
चुनावी साल में होते तमाशे ही तमाशे हैं।
चलेगी मुल्क में मेरे ख़ुदा ये मसखरी कब तक।।
चलेगी मुल्क में मेरे ख़ुदा ये मसखरी कब तक।।
दुशासन हँस रहा देखो, झपट कर थाम लो गर्दन।
कि कान्हा के भरोसे ही रहोगी द्रौपदी कब तक।।
जलाकर खुद को मैंने रौशनी देने की ठानी है।
कि अब है देखना आखिर रहेगी तीरगी कब तक।।
कि अब है देखना आखिर रहेगी तीरगी कब तक।।
✍ *डॉ पवन मिश्र*
No comments:
Post a Comment